नित-नए शहर नित-नई दुनिया
हम को आवारगी से प्यार रहा
उन के आने के ब'अद भी जालिब
देर तक उन का इंतिज़ार रहा
Faiz Ahmad Faiz
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लाख कहते रहें ज़ुल्मत को न ज़ुल्मत लिखना
दिल वालो क्यूँ दिल सी दौलत यूँ बे-कार लुटाते हो
नन्ही जा सो जा
दुश्मनों ने जो दुश्मनी की है
नाम क्या लूँ
ये सोच कर न माइल-ए-फ़रियाद हम हुए
अपनों ने वो रंज दिए हैं बेगाने याद आते हैं
तुझे पाया कि तुझ को खो दिया है
कराहते हुए इंसान की सदा हम हैं
वो देखने मुझे आना तो चाहता होगा
'लता'
तुम्हें तो नाज़ बहुत दोस्तों पे था 'जालिब'