रंग ओ बू-ए-गुलाब कह लूँगा
मौज-ए-जाम-ए-शराब कह लूँगा
लोग कहते हैं तेरा नाम न लूँ
मैं तुझे माहताब कह लूँगा
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और सब भूल गए हर्फ़-ए-सदाक़त लिखना
अफ़्सोस तुम्हें कार के शीशे का हुआ है
'ग़ालिब'-ओ-'यगाना' से लोग भी थे जब तन्हा
तुम्हें तो नाज़ बहुत दोस्तों पे था 'जालिब'
तेरी आँखों का अजब तुर्फ़ा समाँ देखा है
कैसे कहें कि याद-ए-यार रात जा चुकी बहुत
कम पुराना बहुत नया था फ़िराक़
'लता'
औरत
कौन बताए कौन सुझाए कौन से देस सिधार गए
दिल-ए-पुर-शौक़ को पहलू में दबाए रक्खा
तुम से पहले वो जो इक शख़्स यहाँ तख़्त-नशीं था