सब्ज़ा-ज़ारों में गुज़र था अपना
मस्त ओ शादाब नगर था अपना
जब उठाता है कोई महफ़िल से
याद आता है कि घर था अपना
Gulzar
Wasi Shah
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Rahat Indori
Javed Akhtar
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
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कुछ और भी हैं काम हमें ऐ ग़म-ए-जानाँ
कौन बताए कौन सुझाए कौन से देस सिधार गए
सलाम लोगो
यूँ वो ज़ुल्मत से रहा दस्त-ओ-गरेबाँ यारो
नित-नए शहर नित-नई दुनिया
इस शहर-ए-ख़राबी में ग़म-ए-इश्क़ के मारे
माँ
जब कोई कली सेहन-ए-गुलिस्ताँ में खिली है
कूचा-ए-सुब्ह में जा पहुँचे हम
जवाँ आग
हम ने सुना था सहन-ए-चमन में कैफ़ के बादल छाए हैं
शहर-ए-ज़ुल्मात को सबात नहीं