सो गए अंजुम-ए-शब याद न आ
ऐ मिरी जान-ए-तरब याद न आ
मिरी पथराई हुई आँखों में
कोई आँसू नहीं अब याद न आ
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नन्ही जा सो जा
दोस्तो मशवरे न दो हम को
उस रऊनत से वो जीते हैं कि मरना ही नहीं
फिर कभी लौट कर न आएँगे
दियार-ए-सब्ज़ा ओ गुल से निकल कर
रोए भगत कबीर
यूँ वो ज़ुल्मत से रहा दस्त-ओ-गरेबाँ यारो
इक तिरी याद से इक तेरे तसव्वुर से हमें
शहर वीराँ उदास हैं गलियाँ
ज़र्रे ही सही कोह से टकरा तो गए हम
जब कोई कली सेहन-ए-गुलिस्ताँ में खिली है
उस सितमगर की हक़ीक़त हम पे ज़ाहिर हो गई