ज़ुल्फ़ की बात किए जाते हैं
दिन को यूँ रात किए जाते हैं
चंद आँसू हैं इन्हें भी 'जालिब'
नज़र-ए-हालात किए जाते हैं
Anwar Masood
Jaun Eliya
Gulzar
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
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मावरा-ए-जहाँ से आए हैं
दुनिया तो चाहती है यूँही फ़ासले रहें
तुम्हें तो नाज़ बहुत दोस्तों पे था 'जालिब'
मिरी निगाह से वो देखते रहे हैं मुझे
जहाँ आसाँ था दिन को रात करना
कम पुराना बहुत नया था फ़िराक़
तिरे माथे पे जब तक बल रहा है
और सब भूल गए हर्फ़-ए-सदाक़त लिखना
रोए भगत कबीर
नाम क्या लूँ
इस शहर-ए-ख़राबी में ग़म-ए-इश्क़ के मारे
नन्ही जा सो जा