कच्चे आँगन का वो घर वो बाम-ओ-दर
गाँव की पगडंडियाँ वो रहगुज़र
वो नदी का सुरमई पानी शजर
जा नहीं सकता बजा उन तक मगर
सामने रहते हैं वो शाम-ओ-सहर
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Javed Akhtar
Rahat Indori
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(3907) Peoples Rate This
मुशीर
हम ने दिल से तुझे सदा माना
तू रंग है ग़ुबार हैं तेरी गली के लोग
डूब जाएगा आज भी ख़ुर्शीद
जवाँ आग
सच ही लिखते जाना
आने वाली बरखा देखें क्या दिखलाए आँखों को
कराहते हुए इंसान की सदा हम हैं
शेर से शाइरी से डरते हैं
इक शख़्स बा-ज़मीर मिरा यार 'मुसहफ़ी'
कभी तो मेहरबाँ हो कर बुला लें
और सब भूल गए हर्फ़ सदाक़त लिखना