इलाही एक ग़म-ए-रोज़गार क्या कम था
कि इश्क़ भेज दिया जान-ए-मुब्तला के लिए
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Gulzar
Wasi Shah
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1929) Peoples Rate This
अहबाब का शिकवा क्या कीजिए ख़ुद ज़ाहिर ओ बातिन एक नहीं
हाथ रख रख के वो सीने पे किसी का कहना
ज़िक्र उस्ताद-ए-फ़न का जाने दे
मुझ से क्या हो सका वफ़ा के सिवा
तकिया
अब तो कुछ और भी अंधेरा है
जो भी है सूरत-ए-हालात कहो चुप न रहो
'हफ़ीज़' अहल-ए-ज़बाँ कब मानते थे
फिर दे के ख़ुशी हम उसे नाशाद करें क्यूँ
सख़्त-गीर आक़ा
दिल अभी तक जवान है प्यारे
वो अब्र जो मय-ख़्वार की तुर्बत पे न बरसे