जब मिला कोई हसीं जान पर आफ़त आई
सौ जगह अहद-ए-जवानी में तबीअत आई
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बिगड़ जाते थे सुन कर याद है कुछ वो ज़माना भी
पहुँचे उस को सलाम मेरा
ख़ुद-ब-ख़ुद आँख बदल कर ये सवाल अच्छा है
परी थी कोई छलावा थी या जवानी थी
मुँह मिरा एक एक तकता था
बुत-कदा नज़दीक काबा दूर था
सुन के मेरे इश्क़ की रूदाद को
दिया जब जाम-ए-मय साक़ी ने भर के
क़ासिद ख़िलाफ़-ए-ख़त कहीं तेरा बयाँ न हो
अख़ीर वक़्त है किस मुँह से जाऊँ मस्जिद को
जाओ भी जिगर क्या है जो बेदाद करोगे
शब-ए-विसाल लगाया जो उन को सीने से