आसार-ए-इश्क़ आँखों से होने लगे अयाँ
बेदारी की तरक़्क़ी हुई ख़्वाब कम हुआ
Anwar Masood
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Gulzar
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Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
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Parveen Shakir
Allama Iqbal
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मय-ए-गुल-रंग से लबरेज़ रहें जाम सफ़ेद
सख़्ती-ए-राह खींचिए मंज़िल के शौक़ में
आख़िर-ए-कार चले तीर की रफ़्तार क़दम
तुर्रा उसे जो हुस्न-ए-दिल-आज़ार ने किया
क़िस्सा-ए-सिलसिला-ए-ज़ुल्फ़ न कहना बेहतर
दिल की कुदूरतें अगर इंसाँ से दूर हों
वहशत-ए-दिल ने किया है वो बयाबाँ पैदा
आप की नाज़ुक कमर पर बोझ पड़ता है बहुत
ये दिल लगाने में मैं ने मज़ा उठाया है
है जब से दस्त-ए-यार में साग़र शराब का
हवा-ए-दौर-ए-मय-ए-ख़ुश-गवार राह में है
बहर-ए-हस्ती सा कोई दरिया-ए-बे-पायाँ नहीं