मत हलाक इतना करो मुझ को मलामत कर कर
नेक-नामो तुम्हें क्या मुझ से है बद-नाम से काम
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इस जहाँ में सिफ़त-ए-इश्क़ से मौसूफ़ हैं हम
रहे है नक़्श मेरे चश्म-ओ-दिल पर यूँ तिरी सूरत
उठूँ दहशत से ता महफ़िल से उस की
आए हैं हम जहाँ में ग़म ले कर
दुनिया का व दीं का हम को क्या होश
हर घड़ी मत रूठ उस से फेर पल में मिल न जा
दिल ने पाया जो मिरे मुज़्दा तिरी पाती का
राह-रस्ते में तू यूँ रहता है आ कर हम से मिल
हुस्न को उस के ख़त का दाग़ लगा
न ग़रज़ नंग से रखते हैं न कुछ नाम से काम
देखें तुझे न आवेंगे हम
हक़ अदा करना मोहब्बत का बहुत दुश्वार है