ये इल्तिजा दुआ ये तमन्ना फ़ुज़ूल है
सूखी नदी के पास समुंदर न जाएगा
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कई सितारे यहाँ टूटते बिखरते हैं
वो बद-दुआ उसे समझे अगर दुआ लिक्खूँ
कब क़ाबिल-ए-तक़लीद है किरदार हमारा
चेहरे को तेरे देख के ख़ामोश हो गया
सिलसिला ख़्वाबों का सब यूँही धरा रह जाएगा
हर सदा से बच के वो एहसास-ए-तन्हाई में है
मुद्दआ हम अपना काग़ज़ पर रक़म कर जाएँगे
ये जज़्बा-ए-तलब तो मिरा मर न जाएगा
महक किरदार की आती रही है
मैं ख़ाल-ओ-ख़द का सरापा तसव्वुरात में था
सूने सूने उजड़े उजड़े से घरों में ले चलो