जो पा लिया तुझे मैं ख़ुद को ढूँडने निकला
तुम्हारे क़ुर्ब ने भी ज़ख़्म-ए-ना-रसाई दिया
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मिरे रियाज़ का आख़िर असर दिखाई दिया
आओ मिल बैठ कर हँसें बोलें
उतर के नीचे कभी मेरे साथ भी तो चलो
मिरे कलाम में पेचीदा इस्तिआ'रा नहीं
इस तरह पैकर-ए-वफ़ा हो जाएँ
तुंदी-ए-सैल-ए-वक़्त में ये भी है कोई ज़िंदगी
दर्द के सीप में पैदा हुई बेदारी सी
उम्र भर बहते हैं ग़म के तुंद-रौ धारों के साथ
हैरान सारा शहर था जिस की उड़ान पर
उतरने वाली दुखों की बरात से पहले
आँसू को अपने दीदा-ए-तर से निकालना
इस का नहीं है ग़म कोई जाँ से अगर गुज़र गए