हर क़दम पर नित-नए साँचे में ढल जाते हैं लोग
देखते ही देखते कितने बदल जाते हैं लोग
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Anwar Masood
Rahat Indori
Gulzar
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Parveen Shakir
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यम-ब-यम फैला हुआ है प्यास का सहरा यहाँ
क्या क्या न ज़िंदगी के फ़साने रक़म हुए
नाला-ए-ग़म शो'ला-असर चाहिए
हारून की आवाज़
मैं जो कुछ सोचता हूँ अब तुम्हें भी सोचना होगा
अब न कोई मंज़िल है और न रहगुज़र कोई
जो कुछ भी गुज़रता है मिरे दिल पे गुज़र जाए
बदन पे पैरहन-ए-ख़ाक के सिवा क्या है
ये कैसा क़ाफ़िला है जिस में सारे लोग तन्हा हैं
ये शहर-ए-रफ़ीक़ाँ है दिल-ए-ज़ार सँभल के
रौशनी में अपनी शख़्सियत पे जब भी सोचना
सूरज के उजाले में चराग़ाँ नहीं मुमकिन