Bewafa Poetry (page 22)
इश्क़-ए-सितम-परस्त क्या हुस्न-ए-सितम-शिआ'र क्या
बासित भोपाली
लड़ ही जाए किसी निगार से आँख
बशीरुद्दीन अहमद देहलवी
तज़्किरे में तिरे इक नाम को यूँ जोड़ दिया
बशीर फ़ारूक़ी
मैं जितनी देर तिरी याद में उदास रहा
बशीर फ़ारूक़ी
वो सितम-परवर ब-चश्म अश्क-बार आ ही गया
बशीर फ़ारूक़
सबा गुल-ए-रेज़ जाँ-परवर फ़ज़ा है
बशीर फ़ारूक़
सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा
बशीर बद्र
कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी
बशीर बद्र
आशिक़ी में बहुत ज़रूरी है
बशीर बद्र
वो अपने घर चला गया अफ़्सोस मत करो
बशीर बद्र
सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा
बशीर बद्र
मान मौसम का कहा छाई घटा जाम उठा
बशीर बद्र
जब तक निगार-ए-दाश्त का सीना दुखा न था
बशीर बद्र
बे-तहाशा सी ला-उबाली हँसी
बशीर बद्र
अज़्मतें सब तिरी ख़ुदाई की
बशीर बद्र
दिल जो उम्मीद-वार होता है
बशीरुद्दीन राज़
अज़ल-ता-अबद
बशर नवाज़
जब कभी होंगे तो हम माइल-ए-ग़म ही होंगे
बशर नवाज़
गया शबाब न पैग़ाम-ए-वस्ल-ए-यार आया
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
दिल जिंस-ए-मोहब्बत का ख़रीदार नहीं है
बाक़ी सिद्दीक़ी
यूँ सितमगर नहीं होते जानाँ
बाक़ी अहमदपुरी
उदास बाम है दर काटने को आता है
बाक़ी अहमदपुरी
जो जहाँ के आइना हैं दिल उन्हों के सादा हैं
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
सज़ा
बाक़र मेहदी
मैं भाग के जाऊँगा कहाँ अपने वतन से
बाक़र मेहदी
किसी पे कोई भरोसा करे तो कैसे करे
बाक़र मेहदी
चाहा बहुत कि इश्क़ की फिर इब्तिदा न हो
बाक़र मेहदी
बदल के रख देंगे ये तसव्वुर कि आदमी का वक़ार क्या है
बाक़र मेहदी
अश्क मेरे हैं मगर दीदा-ए-नम है उस का
बाक़र मेहदी
अब ख़ानुमाँ-ख़राब की मंज़िल यहाँ नहीं
बाक़र मेहदी