Heart Broken Poetry (page 205)
इश्क़ तो मुश्किल है ऐ दिल कौन कहता सहल है
ज़फ़र
हम ने तिरी ख़ातिर से दिल-ए-ज़ार भी छोड़ा
ज़फ़र
हम ये तो नहीं कहते कि ग़म कह नहीं सकते
ज़फ़र
होते होते चश्म से आज अश्क-बारी रह गई
ज़फ़र
हिज्र के हाथ से अब ख़ाक पड़े जीने में
ज़फ़र
हवा में फिरते हो क्या हिर्स और हवा के लिए
ज़फ़र
है दिल को जो याद आई फ़लक-ए-पीर किसी की
ज़फ़र
गई यक-ब-यक जो हवा पलट नहीं दिल को मेरे क़रार है
ज़फ़र
देख दिल को मिरे ओ काफ़िर-ए-बे-पीर न तोड़
ज़फ़र
भरी है दिल में जो हसरत कहूँ तो किस से कहूँ
ज़फ़र
बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी
ज़फ़र
यास की कोहर में लिपटा हुआ चेहरा देखा
बाग़ हुसैन कमाल
ज़रूरतों की हमाहमी में जो राह चलते भी टोकती है वो शाइ'री है
बद्र-ए-आलम ख़लिश
क़दमों से इतना दूर किनारा कभी न था
बद्र-ए-आलम ख़लिश
निशान-ए-ज़ख़्म पे निश्तर-ज़नी जो होने लगी
बद्र-ए-आलम ख़लिश
कहीं सुब्ह-ओ-शाम के दरमियाँ कहीं माह-ओ-साल के दरमियाँ
बद्र-ए-आलम ख़लिश
गुम हुए जाते हैं धड़कन के निशाँ हम-नफ़सो
बद्र-ए-आलम ख़लिश
गौरय्यों ने जश्न मनाया मेरे आँगन बारिश का
बद्र-ए-आलम ख़लिश
चुप थे जो बुत सवाल ब-लब बोलने लगे
बद्र-ए-आलम ख़लिश
आसमाँ पर काले बादल छा गए
बद्र-ए-आलम ख़लिश
क़ातिल की सारी साज़िशें नाकाम ही रहीं
बद्र वास्ती
नवेद-ए-सफ़र
बद्र वास्ती
ख़बर शाकी है
बद्र वास्ती
वो जब देगा जो कुछ देगा देगा अपने वालों को
बद्र वास्ती
फल दरख़्तों से गिरे थे आँधियों में थाल भर
बद्र वास्ती
किस को फ़ुर्सत कौन पढ़ेगा चेहरे जैसा सच्चा सच
बद्र वास्ती
इक़रार किसी दिन है तो इंकार किसी दिन
बद्र वास्ती
फ़िक्र-ए-अहल-ए-हुनर पे बैठी है
बद्र वास्ती
धानी सुरमई सब्ज़ गुलाबी जैसे माँ का आँचल शाम
बद्र वास्ती
चराग़ों में अँधेरा है अँधेरे में उजाले हैं
बद्र वास्ती