Heart Broken Poetry (page 208)
एक नज़्म
अज़रा अब्बास
अँधेरा
अज़रा अब्बास
आख़िरी रूसूमात के दौरान
अज़रा अब्बास
वतन
अज़मतुल्लाह ख़ाँ
प्यारा प्यारा घर अपना
अज़मतुल्लाह ख़ाँ
नन्हा ग़ासिब
अज़मतुल्लाह ख़ाँ
ज़िंदगी मेरी मुझे क़ैद किए देती है
अज़्म शाकरी
ये जो दीवार अँधेरों ने उठा रक्खी है
अज़्म शाकरी
सारे दुख सो जाएँगे लेकिन इक ऐसा ग़म भी है
अज़्म शाकरी
अगर साए से जल जाने का इतना ख़ौफ़ था तो फिर
अज़्म शाकरी
आँसुओं से लिख रहे हैं बेबसी की दास्ताँ
अज़्म शाकरी
ये मत कहो कि भीड़ में तन्हा खड़ा हूँ मैं
अज़्म शाकरी
तीरगी में सुब्ह की तनवीर बन जाएँगे हम
अज़्म शाकरी
शब की आग़ोश में महताब उतारा उस ने
अज़्म शाकरी
ख़ून आँसू बन गया आँखों में भर जाने के ब'अद
अज़्म शाकरी
ख़ाक उड़ाते हुए ये म'अरका सर करना है
अज़्म शाकरी
घर में चाँदी के कोई सोने के दर रख जाएगा
अज़्म शाकरी
दरीदा-पैरहनों में शुमार हम भी हैं
अज़्म शाकरी
अपने दुख-दर्द का अफ़्साना बना लाया हूँ
अज़्म शाकरी
अजीब हालत है जिस्म-ओ-जाँ की हज़ार पहलू बदल रहा हूँ
अज़्म शाकरी
अगर दश्त-ए-तलब से दश्त-ए-इम्कानी में आ जाते
अज़्म शाकरी
कल सामने मंज़िल थी पीछे मिरी आवाज़ें
अज़्म बहज़ाद
ख़राबी
अज़्म बहज़ाद
वुसअत-ए-चश्म को अंदोह-ए-बसारत लिक्खा
अज़्म बहज़ाद
वुसअत-ए-चश्म को अंदोह-ए-बसारत लिख्खा
अज़्म बहज़ाद
उस आँख से वहशत की तासीर उठा लाया
अज़्म बहज़ाद
शाम आई तो कोई ख़ुश-बदनी याद आई
अज़्म बहज़ाद
मुझे कल अचानक ख़याल आ गया आसमाँ खो न जाए
अज़्म बहज़ाद
मैं ने कल ख़्वाब में आइंदा को चलते देखा
अज़्म बहज़ाद
मैं ने चुप के अंधेरे में ख़ुद को रखा इक फ़ज़ा के लिए
अज़्म बहज़ाद