Love Poetry (page 405)
अगर सफ़र में मिरे साथ मेरा यार चले
आलोक श्रीवास्तव
क़िस्मत में ख़ुशी जितनी थी हुई और ग़म भी है जितना होना है
आले रज़ा रज़ा
बंदिशें इश्क़ में दुनिया से निराली देखें
आले रज़ा रज़ा
यही अच्छा है जो इस तरह मिटाए कोई
आले रज़ा रज़ा
क़िस्मत में ख़ुशी जितनी थी हुई और ग़म भी है जितना होना है
आले रज़ा रज़ा
जो चाहते हो सो कहते हो चुप रहने की लज़्ज़त क्या जानो
आले रज़ा रज़ा
हुस्न की फ़ितरत में दिल-आज़ारियाँ
आले रज़ा रज़ा
अल्लाह नज़र कोई ठिकाना नहीं आता
आले रज़ा रज़ा
वो तबस्सुम है कि 'ग़ालिब' की तरह-दार ग़ज़ल
आल-ए-अहमद सूरूर
कुछ तो है वैसे ही रंगीं लब ओ रुख़्सार की बात
आल-ए-अहमद सूरूर
जहाँ में हो गई ना-हक़ तिरी जफ़ा बदनाम
आल-ए-अहमद सूरूर
हुस्न काफ़िर था अदा क़ातिल थी बातें सेहर थीं
आल-ए-अहमद सूरूर
टीपू की आवाज़
आल-ए-अहमद सूरूर
ज़ंजीर से जुनूँ की ख़लिश कम न हो सकी
आल-ए-अहमद सूरूर
यूँ जो उफ़्ताद पड़े हम पे वो सह जाते हैं
आल-ए-अहमद सूरूर
ये दौर मुझ से ख़िरद का वक़ार माँगे है
आल-ए-अहमद सूरूर
वो जिएँ क्या जिन्हें जीने का हुनर भी न मिला
आल-ए-अहमद सूरूर
वो एहतियात के मौसम बदल गए कैसे
आल-ए-अहमद सूरूर
सियाह रात की सब आज़माइशें मंज़ूर
आल-ए-अहमद सूरूर
शगुफ़्तगी-ए-दिल-ए-वीराँ में आज आ ही गई
आल-ए-अहमद सूरूर
सफ़र तवील सही हासिल-ए-सफ़र क्या था
आल-ए-अहमद सूरूर
नवा-ए-शौक़ में शोरिश भी है क़रार भी है
आल-ए-अहमद सूरूर
लोग तन्हाई का किस दर्जा गिला करते हैं
आल-ए-अहमद सूरूर
लो अँधेरों ने भी अंदाज़ उजालों के लिए
आल-ए-अहमद सूरूर
कुछ लोग तग़य्युर से अभी काँप रहे हैं
आल-ए-अहमद सूरूर
ख़्वाबों से यूँ तो रोज़ बहलते रहे हैं हम
आल-ए-अहमद सूरूर
ख़ुश्क खेती है मगर उस को हरी कहते हैं
आल-ए-अहमद सूरूर
ख़याल जिन का हमें रोज़-ओ-शब सताता है
आल-ए-अहमद सूरूर
जिस ने किए हैं फूल निछावर कभी कभी
आल-ए-अहमद सूरूर
जब्र-ए-हालात का तो नाम लिया है तुम ने
आल-ए-अहमद सूरूर