देशभक्तिपूर्ण Poetry (page 8)
अहमक़ों की कांफ्रेंस
दिलावर फ़िगार
या रब मिरे नसीब में अक्ल-ए-हलाल हो
दिलावर फ़िगार
अजीब रंग अजब हाल में पड़े हुए हैं
दिलावर अली आज़र
ज़िंदगी का किस लिए मातम रहे
दत्तात्रिया कैफ़ी
राहत कहाँ नसीब थी जो अब कहीं नहीं
दत्तात्रिया कैफ़ी
तमाम नूर-ए-तजल्ली तमाम रंग-ए-चमन
दर्शन सिंह
मोहब्बत की मता-ए-जावेदानी ले के आया हूँ
दर्शन सिंह
इस राह में आते हैं बयाबाँ भी चमन भी
दर्शन सिंह
गुलों पे ख़ाक-ए-मेहन के सिवा कुछ और नहीं
दर्शन सिंह
उन के इक जाँ-निसार हम भी हैं
दाग़ देहलवी
मिन्नतों से भी न वो हूर-शमाइल आया
दाग़ देहलवी
ले चला जान मिरी रूठ के जाना तेरा
दाग़ देहलवी
होश आते ही हसीनों को क़यामत आई
दाग़ देहलवी
काएनात-ए-आरज़ू में हम बसर करने लगे
चित्रांश खरे
नई-देहली
चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी
वतन की ख़ाक से मर कर भी हम को उन्स बाक़ी है
चकबस्त ब्रिज नारायण
चराग़ क़ौम का रौशन है अर्श पर दिल के
चकबस्त ब्रिज नारायण
अज़ीज़ान-ए-वतन को ग़ुंचा ओ बर्ग ओ समर जाना
चकबस्त ब्रिज नारायण
रामायण का एक सीन
चकबस्त ब्रिज नारायण
मर्सिया गोपाल कृष्ण गोखले
चकबस्त ब्रिज नारायण
ख़ाक-ए-हिंद
चकबस्त ब्रिज नारायण
हुब्ब-ए-क़ौमी
चकबस्त ब्रिज नारायण
हमारा वतन दिल से प्यारा वतन
चकबस्त ब्रिज नारायण
ज़बाँ को बंद करें या मुझे असीर करें
चकबस्त ब्रिज नारायण
नए झगड़े निराली काविशें ईजाद करते हैं
चकबस्त ब्रिज नारायण
कुछ ऐसा पास-ए-ग़ैरत उठ गया इस अहद-ए-पुर-फ़न में
चकबस्त ब्रिज नारायण
कभी था नाज़ ज़माने को अपने हिन्द पे भी
चकबस्त ब्रिज नारायण
फ़ना का होश आना ज़िंदगी का दर्द-ए-सर जाना
चकबस्त ब्रिज नारायण
दिल किए तस्ख़ीर बख़्शा फ़ैज़-ए-रूहानी मुझे
चकबस्त ब्रिज नारायण
शिकन-अंदर-शिकन याद आ गया है
बुशरा ज़ैदी