Sharab Poetry (page 2)
कैफ़-ए-हयात तेरे सिवा कुछ नहीं रहा
इक़बाल कैफ़ी
इश्क़ इतना कमाल रखता है
इक़बाल हुसैन रिज़वी इक़बाल
सब समझते हैं कि हम किस कारवाँ के लोग हैं
इक़बाल अज़ीम
कुछ ऐसे ज़ख़्म भी दर-पर्दा हम ने खाए हैं
इक़बाल अज़ीम
बस हो चुका हुज़ूर ये पर्दे हटाइए
इक़बाल अज़ीम
ज़ोफ़ आता है दिल को थाम तो लो
इंशा अल्लाह ख़ान
ये किस से चाँदनी में हम ब-ज़ेर-ए-आसमाँ लिपटे
इंशा अल्लाह ख़ान
याँ ज़ख़्मी-ए-निगाह के जीने पे हर्फ़ है
इंशा अल्लाह ख़ान
टुक आँख मिलाते ही किया काम हमारा
इंशा अल्लाह ख़ान
तुझ से यूँ यक-बार तोड़ूँ किस तरह
इंशा अल्लाह ख़ान
तोडूँगा ख़ुम-ए-बादा-ए-अंगूर की गर्दन
इंशा अल्लाह ख़ान
तर्क कर अपने नंग-ओ-नाम को हम
इंशा अल्लाह ख़ान
सद-बर्ग गह दिखाई है गह अर्ग़वाँ बसंत
इंशा अल्लाह ख़ान
नादाँ कहाँ तरब का सर-अंजाम और इश्क़
इंशा अल्लाह ख़ान
मुझे क्यूँ न आवे साक़ी नज़र आफ़्ताब उल्टा
इंशा अल्लाह ख़ान
मुझे छेड़ने को साक़ी ने दिया जो जाम उल्टा
इंशा अल्लाह ख़ान
मिल मुझ से ऐ परी तुझे क़ुरआन की क़सम
इंशा अल्लाह ख़ान
मिल गए पर हिजाब बाक़ी है
इंशा अल्लाह ख़ान
लब पे आई हुई ये जान फिरे
इंशा अल्लाह ख़ान
काश अब्र करे चादर-ए-महताब की चोरी
इंशा अल्लाह ख़ान
कमर बाँधे हुए चलने को याँ सब यार बैठे हैं
इंशा अल्लाह ख़ान
फ़क़ीराना है दिल मुक़ीम उस की रह का
इंशा अल्लाह ख़ान
दीवार फाँदने में देखोगे काम मेरा
इंशा अल्लाह ख़ान
बंदगी हम ने तो जी से अपनी ठानी आप की
इंशा अल्लाह ख़ान
आने अटक अटक के लगी साँस रात से
इंशा अल्लाह ख़ान
मिटती क़द्रों में भी पाबंद-ए-वफ़ा हैं हम लोग
इंद्र मोहन मेहता कैफ़
मिरी चाहतों में ग़ुरूर हो दिल-ए-ना-तवाँ में सुरूर हो
इन्दिरा वर्मा
यूँ वफ़ा के सारे निभाओ ग़म कि फ़रेब में भी यक़ीन हो
इन्दिरा वर्मा
मुझे रंग दे न सुरूर दे मिरे दिल में ख़ुद को उतार दे
इन्दिरा वर्मा
मोहब्बत में आया है तन्हा अभी रंग
इन्दिरा वर्मा