Sharab Poetry (page 30)
दौर-ए-निगाह-ए-साक़ी-ए-मस्ताना एक है
चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी
ये कैसी बज़्म है और कैसे उस के साक़ी हैं
चकबस्त ब्रिज नारायण
ख़ाक-ए-हिंद
चकबस्त ब्रिज नारायण
ज़बाँ को बंद करें या मुझे असीर करें
चकबस्त ब्रिज नारायण
मिरी बे-ख़ुदी है वो बे-ख़ुदी कहीं ख़ुदी का वहम-ओ-गुमाँ नहीं
चकबस्त ब्रिज नारायण
दर्द-ए-दिल पास-ए-वफ़ा जज़्बा-ए-ईमाँ होना
चकबस्त ब्रिज नारायण
अगर दर्द-ए-मोहब्बत से न इंसाँ आश्ना होता
चकबस्त ब्रिज नारायण
ये अदा आप में सरकार कहाँ थी पहले
बुध प्रकाश गुप्ता जौहर देवबंद
आठ पहर है ये ही ग़म
बुध प्रकाश गुप्ता जौहर देवबंद
यही समझा हूँ बस इतनी हुई है आगही मुझ को
ब्रहमा नन्द जलीस
दास्तान-ए-शमअ' थी या क़िस्सा-ए-परवाना था
ब्रहमा नन्द जलीस
अगर दुश्मन की थोड़ी सी मरम्मत और हो जाती
बूम मेरठी
सर जिस पे न झुक जाए उसे दर नहीं कहते
बिस्मिल सईदी
बैठा नहीं हूँ साया-ए-दीवार देख कर
बिस्मिल सईदी
क्या करें जाम-ओ-सुबू हाथ पकड़ लेते हैं
बिस्मिल अज़ीमाबादी
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
बिस्मिल अज़ीमाबादी
रुख़ पे गेसू जो बिखर जाएँगे
बिस्मिल अज़ीमाबादी
कहाँ आया है दीवानों को तेरा कुछ क़रार अब तक
बिस्मिल अज़ीमाबादी
चमन को लग गई किस की नज़र ख़ुदा जाने
बिस्मिल अज़ीमाबादी
अब मुलाक़ात कहाँ शीशे से पैमाने से
बिस्मिल अज़ीमाबादी
अब दम-ब-ख़ुद हैं नब्ज़ की रफ़्तार देख कर
बिस्मिल अज़ीमाबादी
इतना भी न साक़ी होश रहा पी कर ये हमें मय-ख़ाना था
बिस्मिल इलाहाबादी
आज़ार-ओ-जफ़ा-ए-पैहम से उल्फ़त में जिन्हें आराम नहीं
बिस्मिल इलाहाबादी
जाम-ए-गदाई हाथ में ले नित सांज-सवेरे फिरते हैं
भूरे ख़ान आशुफ़्ता
गले मुझ को लगा लो ऐ मिरे दिलदार होली में
भारतेंदु हरिश्चंद्र
दश्त-पैमाई का गर क़स्द मुकर्रर होगा
भारतेंदु हरिश्चंद्र
लाख टकराते फिरें हम सर दर-ओ-दीवार से
भारत भूषण पन्त
असर न पूछिए साक़ी की मस्त आँखों का
बेताब अज़ीमाबादी
अक़्ल दौड़ाई बहुत कुछ तो गुमाँ तक पहुँचे
बेताब अज़ीमाबादी
रिंद-मशरब कोई 'बेख़ुद' सा न होगा वल्लाह
बेख़ुद देहलवी