Sharab Poetry (page 33)
आएँगे गर उन्हें ग़ैरत होगी
बयान मेरठी
ले के दिल उस शोख़ ने इक दाग़ सीने पर दिया
बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान
जो ज़मीं पर फ़राग़ रखते हैं
बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान
जा कहे कू-ए-यार में कोई
बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान
वारफ़्तगी-ए-इश्क़ न जाए तो क्या करें
बासित भोपाली
कुछ सिला ही न मिला इश्क़ में जल जाने का
बासित भोपाली
हयात-ओ-मौत का इक सिलसिला है
बासित भोपाली
हर तरफ़ सोज़ का अंदाज़ जुदागाना है
बासित भोपाली
कर लिया दिन में काम आठ से पाँच
बासिर सुल्तान काज़मी
रुख़ तुम्हारा हो जिधर हम भी उधर हो जाएँगे
बशीर महताब
अब के जुनूँ में लज़्ज़त-ए-आज़ार भी नहीं
बशीर फ़ारूक़ी
तख़लीक़-ए-काएनात दिगर कर सके तो कर
बशीर फ़ारूक़
सबा गुल-ए-रेज़ जाँ-परवर फ़ज़ा है
बशीर फ़ारूक़
प्यार ही प्यार है सब लोग बराबर हैं यहाँ
बशीर बद्र
न तुम होश में हो न हम होश में हैं
बशीर बद्र
मान मौसम का कहा छाई घटा जाम उठा
बशीर बद्र
कभी तो आसमाँ से चाँद उतरे जाम हो जाए
बशीर बद्र
हाथ में चाँद जहाँ आया मुक़द्दर चमका
बशीर बद्र
वही ताज है वही तख़्त है वही ज़हर है वही जाम है
बशीर बद्र
मान मौसम का कहा छाई घटा जाम उठा
बशीर बद्र
लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में
बशीर बद्र
कहाँ आँसुओं की ये सौग़ात होगी
बशीर बद्र
जब तक निगार-ए-दाश्त का सीना दुखा न था
बशीर बद्र
हमारे पास तो आओ बड़ा अंधेरा है
बशीर बद्र
हमारा दिल सवेरे का सुनहरा जाम हो जाए
बशीर बद्र
फ़लक से चाँद सितारों से जाम लेना है
बशीर बद्र
मुझे कहना है
बशर नवाज़
ज़ेर-ए-ज़मीं हूँ तिश्ना-ए-दीदार-ए-यार का
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
लब-ए-रंगीं से अगर तू गुहर-अफ़शाँ होता
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
जब अयाँ सुब्ह को वो नूर-ए-मुजस्सम हो जाए
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़