हुमैरा राहत कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का हुमैरा राहत

हुमैरा राहत कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का हुमैरा राहत
नामहुमैरा राहत
अंग्रेज़ी नामHumaira Rahat
जन्म की तारीख1959
जन्म स्थानKarachi, Pakistan

ज़िक्र सुनती हूँ उजाले का बहुत

ये किस की याद की बारिश में भीगता है बदन

वो मुझ को आज़माता ही रहा है ज़िंदगी भर

वो इश्क़ को किस तरह समझ पाएगा जिस ने

वो और थे कि जो ना-ख़ुश थे दो जहाँ ले कर

उसे भी ज़िंदगी करनी पड़ेगी 'मीर' जैसी

तअल्लुक़ की नई इक रस्म अब ईजाद करना है

सुना है ख़्वाब मुकम्मल कभी नहीं होते

न हम से इश्क़ का मफ़्हूम पूछो

मिरे दिल के अकेले घर में 'राहत'

ख़ुशी मेरी गवारा थी न क़िस्मत को न दुनिया को

कभी कभी तो जुदा बे-सबब भी होते हैं

जो मंज़िल तक जा के और कहीं मुड़ जाए

जहाँ इक शख़्स भी मिलता नहीं है चाहने से

हुज़ूर आप कोई फ़ैसला करें तो सही

गुज़र जाएगी सारी रात इस में

बना कर एक घर दिल की ज़मीं पर उस की यादों का

बहुत ताख़ीर से पाया है ख़ुद को

ये कहना था जो दुनिया कह रही है

वक़्त की आँख से कुछ ख़्वाब नए माँगता है

वक़्त ऐसा कोई तुझ पर आए

तुम्हारे इश्क़ पे दिल को जो मान था न रहा

तअल्लुक़ की नई इक रस्म अब ईजाद करना है

मिसाल-ए-ख़ाक कहीं पर बिखर के देखते हैं

मैं आब-ए-इश्क़ में हल हो गई हूँ

किसी भी राएगानी से बड़ा है

कहानी को मुकम्मल जो करे वो बाब उठा लाई

हवा के साथ ये कैसा मोआमला हुआ है

हर एक ख़्वाब की ताबीर थोड़ी होती है

फ़साना अब कोई अंजाम पाना चाहता है

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