Sad Poetry of Ibn E Insha
नाम | इब्न-ए-इंशा |
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अंग्रेज़ी नाम | Ibn E Insha |
जन्म की तारीख | 1927 |
मौत की तिथि | 1978 |
जन्म स्थान | Karachi |
यूँही तो नहीं दश्त में पहुँचे यूँही तो नहीं जोग लिया
कूचे को तेरे छोड़ कर जोगी ही बन जाएँ मगर
हम भूल सके हैं न तुझे भूल सकेंगे
दिल हिज्र के दर्द से बोझल है अब आन मिलो तो बेहतर हो
दीदा ओ दिल ने दर्द की अपने बात भी की तो किस से की
बे तेरे क्या वहशत हम को तुझ बिन कैसा सब्र ओ सुकूँ
अपनी ज़बाँ से कुछ न कहेंगे चुप ही रहेंगे आशिक़ लोग
अपने हमराह जो आते हो इधर से पहले
अहल-ए-वफ़ा से तर्क-ए-तअल्लुक़ कर लो पर इक बात कहें
आन के इस बीमार को देखे तुझ को भी तौफ़ीक़ हुई
ये सराए है
ये कौन आया
ये बच्चा किस का बच्चा है
ये बातें झूटी बातें हैं
सब माया है
पिछले-पहर के सन्नाटे में
फिर शाम हुई
लब पर नाम किसी का भी हो
कातिक का चाँद
कल हम ने सपना देखा है
इस बस्ती के इक कूचे में
घूम रहा है पीत का प्यासा
फ़र्ज़ करो
दिल-आशोब
दिल पीत की आग में जलता है
दिल इक कुटिया दश्त किनारे
दरवाज़ा खुला रखना
चाँद के तमन्नाई
ऐ मतवालो! नाक़ों वालो!!
उस शाम वो रुख़्सत का समाँ याद रहेगा