इब्राहीम अश्क कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का इब्राहीम अश्क

इब्राहीम अश्क कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का इब्राहीम अश्क
नामइब्राहीम अश्क
अंग्रेज़ी नामIbrahim Ashk
जन्म की तारीख1951

ज़िंदगी वादी ओ सहरा का सफ़र है क्यूँ है

ज़िंदगी अपनी मुसलसल चाहतों का इक सफ़र

ये और बात है कि बरहना थी ज़िंदगी

थी हौसले की बात ज़माने में ज़िंदगी

तिरी ज़मीं से उठेंगे तो आसमाँ होंगे

नाम को भी न किसी आँख से आँसू निकला

नहीं है तुम में सलीक़ा जो घर बनाने का

न दिल में कोई ग़म रहे न मेरी आँख नम रहे

मुझे न देखो मिरे जिस्म का धुआँ देखो

कोई तो होगा जिस को मिरा इंतिज़ार है

कोई भरोसा नहीं अब्र के बरसने का

किस लिए कतरा के जाता है मुसाफ़िर दम तो ले

ख़ुद अपने आप से लेना था इंतिक़ाम मुझे

करें सलाम उसे तो कोई जवाब न दे

दुनिया बहुत क़रीब से उठ कर चली गई

चले गए तो पुकारेगी हर सदा हम को

बिखरे हुए थे लोग ख़ुद अपने वजूद में

बस एक बार ही तोड़ा जहाँ ने अहद-ए-वफ़ा

ज़िंदगी वादी ओ सहरा का सफ़र है क्यूँ है

उस की इक दुनिया हूँ मैं और मेरी इक दुनिया है वो

तिरी ज़मीं से उठेंगे तो आसमाँ होंगे

शीशे का आदमी हूँ मिरी ज़िंदगी है क्या

रू-ब-रू उन के कोई हर्फ़ अदा क्या करते

रात भर तन्हा रहा दिन भर अकेला मैं ही था

न कू-ए-यार में ठहरा न अंजुमन में रहा

मुझे न देखो मिरे जिस्म का धुआँ देखो

मोहब्बतों में जो मिट मिट के शाहकार हुआ

मिशअल-ब-कफ़ कभी तो कभी दिल-ब-दस्त था

मैं कब रहीन-ए-रेग-ए-बयाबान-ए-यास था

लबों पर प्यास हो तो आस के बादल भरे रखियो

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