अपनी ग़ुर्बत की कहानी हम सुनाएँ किस तरह
रात फिर बच्चा हमारा रोते रोते सो गया
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ऐ मौसम-ए-जुनूँ ये अजब तर्ज़-ए-क़त्ल है
ज़मीं के जिस्म को टुकड़ों में बाँटने वालो
हवादिसात ज़रूरी हैं ज़िंदगी के लिए
जब आ जाती है दुनिया घूम फिर कर अपने मरकज़ पर
ये तकल्लुफ़ ये मुदारात समझ में आए
ज़िंदगी कम पढ़े परदेसी का ख़त है 'इबरत'
अपने एहसानों का नीला साएबाँ रहने दिया
सुना है डूब गई बे-हिसी के दरिया में
क्यूँ पशेमाँ हो अगर वअ'दा वफ़ा हो न सका
वो यूँ सुबूत-ए-उरूज-ओ-ज़वाल देता था