सुना है डूब गई बे-हिसी के दरिया में
वो क़ौम जिस को जहाँ का अमीर होना था
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Rahat Indori
Jaun Eliya
Wasi Shah
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1505) Peoples Rate This
ज़मीं के जिस्म को टुकड़ों में बाँटने वालो
वो यूँ सुबूत-ए-उरूज-ओ-ज़वाल देता था
ये तकल्लुफ़ ये मुदारात समझ में आए
क्यूँ पशेमाँ हो अगर वअ'दा वफ़ा हो न सका
अपने एहसानों का नीला साएबाँ रहने दिया
ऐ मौसम-ए-जुनूँ ये अजब तर्ज़-ए-क़त्ल है
हवादिसात ज़रूरी हैं ज़िंदगी के लिए
अपनी ग़ुर्बत की कहानी हम सुनाएँ किस तरह
ज़िंदगी कम पढ़े परदेसी का ख़त है 'इबरत'
जब आ जाती है दुनिया घूम फिर कर अपने मरकज़ पर