इमाम बख़्श नासिख़ कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का इमाम बख़्श नासिख़

इमाम बख़्श नासिख़ कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का इमाम बख़्श नासिख़
नामइमाम बख़्श नासिख़
अंग्रेज़ी नामImam Bakhsh Nasikh
जन्म की तारीख1772
मौत की तिथि1838
जन्म स्थानLucknow

ज़िंदगी ज़िंदा-दिली का है नाम

वो नहीं भूलता जहाँ जाऊँ

तीन त्रिबेनी हैं दो आँखें मिरी

तेरी सूरत से किसी की नहीं मिलती सूरत

ताज़गी है सुख़न-ए-कुहना में ये बाद-ए-वफ़ात

तमाम उम्र यूँ ही हो गई बसर अपनी

तकल्लुम ही फ़क़त है उस सनम का

सियह-बख़्ती में कब कोई किसी का साथ देता है

शुबह 'नासिख़' नहीं कुछ 'मीर' की उस्तादी में

रिफ़अत कभी किसी की गवारा यहाँ नहीं

रश्क से नाम नहीं लेते कि सुन ले न कोई

रात दिन नाक़ूस कहते हैं ब-आवाज़-ए-बुलंद

क्या रोज़-ए-बद में साथ रहे कोई हम-नशीं

ख़्वाब ही में नज़र आ जाए शब-ए-हिज्र कहीं

करे जो हर क़दम पर एक नाला

जुस्तुजू करनी हर इक अम्र में नादानी है

जिस्म ऐसा घुल गया है मुझ मरीज़-ए-इश्क़ का

हम ज़ईफ़ों को कहाँ आमद ओ शुद की ताक़त

हम मय-कशों को डर नहीं मरने का मोहतसिब

हो गया ज़र्द पड़ी जिस पे हसीनों की नज़र

हो गए दफ़्न हज़ारों ही गुल-अंदाज़ इस में

हिर-फिर के दाएरे ही में रखता हूँ मैं क़दम

गो तू मिलता नहीं पर दिल के तक़ाज़े से हम

गया वो छोड़ कर रस्ते में मुझ को

फ़ुर्क़त क़ुबूल रश्क के सदमे नहीं क़ुबूल

दिल सियह है बाल हैं सब अपने पीरी में सफ़ेद

दरिया-ए-हुस्न और भी दो हाथ बढ़ गया

ऐन दानाई है 'नासिख़' इश्क़ में दीवानगी

ऐ अजल एक दिन आख़िर तुझे आना है वले

आती जाती है जा-ब-जा बदली

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