हम मय-कशों को डर नहीं मरने का मोहतसिब
फ़िरदौस में भी सुनते हैं नहर-ए-शराब है
Ahmad Faraz
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गया वो छोड़ कर रस्ते में मुझ को
ताज़गी है सुख़न-ए-कुहना में ये बाद-ए-वफ़ात
हम ज़ईफ़ों को कहाँ आमद ओ शुद की ताक़त
दिल में पोशीदा तप-ए-इश्क़-ए-बुताँ रखते हैं
तमाम उम्र यूँ ही हो गई बसर अपनी
जान हम तुझ पे दिया करते हैं
दरिया-ए-हुस्न और भी दो हाथ बढ़ गया
आने में सदा देर लगाते ही रहे तुम
ऐन दानाई है 'नासिख़' इश्क़ में दीवानगी
सियह-बख़्ती में कब कोई किसी का साथ देता है
सनम कूचा तिरा है और मैं हूँ