ख़ुदा जाने 'असर' को क्या हुआ है
रहा करता है चुप दो दो पहर तक
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सूली चढ़े जो यार के क़द पर फ़िदा न हो
जान कर 'मीर' का कलाम 'असर'
दिल से क्या पूछता है ज़ुल्फ़-ए-गिरह-गीर से पूछ
तेरी जानिब से मुझ पे क्या न हुआ
लोग जब तेरा नाम लेते हैं
सुब्ह-दम रोती जो तेरी बज़्म से जाती है शम्अ
दिल न देते उसे तो क्या करते
इबादत ख़ुदा की ब-उम्मीद-ए-हूर
तड़प तड़प के तमन्ना में करवटें बदलीं
जफ़ाएँ होती हैं घुटता है दम ऐसा भी होता है
मेरे सर में जो रात चक्कर था
ख़ूब-ओ-ज़िश्त-ए-जहाँ का फ़र्क़ न पूछ