मर ही कर उट्ठेंगे तेरे दर से हम
आ के जब बैठे तो फिर उठ जाएँ क्या
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Rahat Indori
Gulzar
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(729) Peoples Rate This
कैसा आना कैसा जाना मेरे घर क्या आओगे
किसी का दिल को रहा इंतिज़ार सारी रात
दोस्ती की तुम ने दुश्मन से अजब तुम दोस्त हो
शैख़ के हाल पर तअस्सुफ़ है
तुम्हारे आशिक़ों में बे-क़रारी क्या ही फैली है
यूँही उलझी रहने दो क्यूँ आफ़त सर पर लाते हो
गुलशन में कौन बुलबुल-ए-नालाँ को दे पनाह
कब ग़ैर हुआ महव तिरी जल्वागरी का
मुफ़्त बोसा हसीं नहीं देते
मेरे सर में जो रात चक्कर था
दिल संग नहीं है कि सितमगर न भर आता
ख़ुदा जाने 'असर' को क्या हुआ है