एक मच्छर काग़ज़ पे लिखी तहरीर का ख़ून चूस रहा है
तुम नहीं देखते
कैसे कोई मच्छर अहल-ए-मेहनत की जिद्द-ओ-जहद का ख़ून चूस कर अपने हराम-ओ-जूद का मुज़ाहिरा करता है
कर सको तो करो
ये फ़ज़ा इतनी तअफ़्फ़ुन क्यूँ है
मैं तो हर जगह ठहरा हुआ ग़लत ख़ून देख रही हूँ
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
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ख़ुदा से कलाम
तज़ाद
जिला
सच
वो जो कहीं नहीं है
शाख़-ए-अदम
हर्फ़-ए-मुक़द्दर
बाज़याफ़्त
एक कहानी इश्क़ की
कर्ब आगही
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चंद सतरें