नज़ाकत उस गुल-ए-राना की देखियो 'इंशा'
नसीम-ए-सुब्ह जो छू जाए रंग हो मैला
Rahat Indori
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Gulzar
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Anwar Masood
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1152) Peoples Rate This
यास-ओ-उमीद-ओ-शादी-ओ-ग़म ने धूम उठाई सीने में
है नूर-ए-बसर मर्दुमक-ए-दीदा में पिन्हाँ यूँ जैसे कन्हैया
है तिरा गाल माल बोसे का
बात के साथ ही मौजूद है टाल एक न एक
याँ ज़ख़्मी-ए-निगाह के जीने पे हर्फ़ है
सद-बर्ग गह दिखाई है गह अर्ग़वाँ बसंत
है जिस में क़ुफ़्ल-ए-ख़ाना-ए-ख़ुम्मार तोड़िए
गाली सही अदा सही चीन-ए-जबीं सही
साँवले तन पे ग़ज़ब धज है बसंती शाल की
गर्मी ने कुछ आग और भी सीने में लगाई
ज़मीं से उट्ठी है या चर्ख़ पर से उतरी है
बंक की जल्वा-गरी पर ग़श हूँ