जो लोग लौट के ख़ुद मेरे पास आए हैं
वो पूछते हैं कि 'अशहर' यहीं पे अब तक हो
Javed Akhtar
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Gulzar
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Wasi Shah
Rahat Indori
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ये ख़ौफ़ कम है मुझे और चमको जब तक हो
ख़्वाहिश हमारे ख़ून की लबरेज़ अब भी है
दरख़्त हाथ हिलाते थे रहनुमाई को
फ़रार पा न सका कोई रास्ता मुझ से
ख़िज़ाँ का क़र्ज़ तो इक इक दरख़्त पर है यहाँ
सब तमन्नाओं से ख़्वाबों से निकल आए हैं
ख़ुद को जब भूल से जाते हैं तो यूँ लगता है