चैत का फूल

मैं चैत का फूल हूँ

और

आकिफ़ हूँ मिट्टी के नीचे

ये चिल्ला-कशी है

किसी और हैअत में ढलने की

चालीस रातों का चला है

भारी किनारों का तिल्ला है

दरिया से उड़ती हवा

अपनी लहरों-भरी शाल फैलाए

बूढ़ा फ़लक थोड़े आँसू बहाए

सियह अब्र पलकों की झालर उठाए

चमकती हुई धूप आख़िर में आए

मुतल्ला बदन को बिछाए

पहाड़ों के क़दमों से

लम्बे समुंदर की वुसअत-भरी सरहदों तक!

ज़मीं इक बड़ी सीप है

बीच बारिश का वहदानियत से लबालब भरा

एक क़तरा है

जो सीप में गिरता है

और मोती में ढलता है

हर्फ़ों के

कौन ऐसे जुमले बनाता है

जुमले में

इक कोड की तरह

मअ'नी छुपाता है

अशरे गुज़रते हैं

इक नस्ल आती है

मअ'नी को

जुमले की ज़ंजीर से आ के आज़ाद करती है

मअ'नी-भरे चैत का फूल है

चैत के फूल का

और तिरी उँगलियों का

हज़ारों बरस का पुराना तअल्लुक़ है

मैं चैत का फूल हूँ

और मुअल्लक़ पड़ा हूँ

किसी दरमियानी ज़माने में

पहुँचूँगा

बर्फ़ीले रस्ते से होता

ख़ुनुक रुत में

ख़ुशबू भरे फूल की मीठी मुट्ठी

की तहवील से होता

अपने अबद से

पुराने ठिकाने में!!

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