ये क़ौल किसी बुज़ुर्ग का सच्चा है
डाली से जुदा न हो तो फल कच्चा है
छोड़ी नहीं जिस ने हुब्ब-ए-दुनिया दिल से
गो रीश सफ़ेद हो मगर बच्चा है
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अपने ही दिल अपनों का दुखाते हैं बहुत
गर नेक दिली से कुछ भलाई की है
जब तक कि सबक़ मिलाप का याद रहा
तारीक है रात और दुनिया ज़ख़्ख़ार
जो चाहिए वो तो है अज़ल से मौजूद
हवा और सूरज का मुक़ाबला
नक़्क़ाश से मुमकिन है कि हो नक़्श ख़िलाफ़
है बार-ए-ख़ुदा कि आलम-आरा तू है
अस्लाफ़ का हिस्सा था अगर नाम-ओ-नुमूद
इसराफ़ से एहतिराज़ अगर फ़रमाते
साक़ी ओ शराब ओ जाम ओ पैमाना क्या
तेज़ी नहीं मिनजुमला-ए-औसाफ़-ए-कमाल