चंद लम्हों को तेरे आने से
इक नई नज़्म कह रहा हूँ मैं
उफ़ ये उम्मीद-ओ-बीम का आलम
रात जब भीग के लहराती है
इस हसीं जाम में हैं ग़ल्तीदा
यूँ दिल की फ़ज़ा में खेलते हैं
यूँ उस के हसीन आरिज़ों पर
यूँ नदी में ग़ुरूब के हंगाम
हाए ये तेरे हिज्र का आलम
याद-ए-माज़ी में यूँ ख़याल तिरा
आ कि इन बद-गुमानियों की क़सम
हुस्न का इत्र जिस्म का संदल