जो रानाई निगाहों के लिए फ़िरदौस-ए-जल्वा है
क्या बताऊँ कि सह रहा हूँ मैं
वो कसी दिन न आ सके पर उसे
सर में तकमील का था इक सौदा
इश्क़ समझे थे जिस को वो शायद
मेरी अक़्ल-ओ-होश की सब हालतें
मिरी जब भी नज़र पड़ती है तुझ पर
है मोहब्बत हयात की लज़्ज़त
चारासाज़ों की चारा-साज़ी से
शर्म दहशत झिझक परेशानी
साल-हा-साल और इक लम्हा
हर तंज़ किया जाए हर इक तअना दिया जाए