मेरी अक़्ल-ओ-होश की सब हालतें
ये तो बढ़ती ही चली जाती है मीआद-ए-सितम
चारासाज़ों की चारा-साज़ी से
शर्म दहशत झिझक परेशानी
साल-हा-साल और इक लम्हा
जो रानाई निगाहों के लिए फ़िरदौस-ए-जल्वा है
उस के और अपने दरमियान में अब
चाँद की पिघली हुई चाँदी में
ये तेरे ख़त तिरी ख़ुशबू ये तेरे ख़्वाब-ओ-ख़याल
पास रह कर जुदाई की तुझ से
जो हक़ीक़त है उस हक़ीक़त से
हर तंज़ किया जाए हर इक तअना दिया जाए