पसीने से मिरे अब तो ये रुमाल
ये तो बढ़ती ही चली जाती है मीआद-ए-सितम
ये तेरे ख़त तिरी ख़ुशबू ये तेरे ख़्वाब-ओ-ख़याल
मिरी जब भी नज़र पड़ती है तुझ पर
चारा-गर भी जो यूँ गुज़र जाएँ
साल-हा-साल और इक लम्हा
कौन सूद-ओ-ज़ियाँ की दुनिया में
थी जो वो इक तमसील-ए-माज़ी आख़िरी मंज़र उस का ये था
उस के और अपने दरमियान में अब
सर में तकमील का था इक सौदा
चारासाज़ों की चारा-साज़ी से
मेरी अक़्ल-ओ-होश की सब हालतें