मिरी जब भी नज़र पड़ती है तुझ पर
शर्म दहशत झिझक परेशानी
पास रह कर जुदाई की तुझ से
चारासाज़ों की चारा-साज़ी से
मेरी अक़्ल-ओ-होश की सब हालतें
ये तेरे ख़त तिरी ख़ुशबू ये तेरे ख़्वाब-ओ-ख़याल
है मोहब्बत हयात की लज़्ज़त
ये तो बढ़ती ही चली जाती है मीआद-ए-सितम
चारा-गर भी जो यूँ गुज़र जाएँ
जो हक़ीक़त है उस हक़ीक़त से
कौन सूद-ओ-ज़ियाँ की दुनिया में
चाँद की पिघली हुई चाँदी में