क्या बताऊँ कि सह रहा हूँ मैं
उस के और अपने दरमियान में अब
साल-हा-साल और इक लम्हा
चाँद की पिघली हुई चाँदी में
कौन सूद-ओ-ज़ियाँ की दुनिया में
चारा-गर भी जो यूँ गुज़र जाएँ
जो हक़ीक़त है उस हक़ीक़त से
पास रह कर जुदाई की तुझ से
जो रानाई निगाहों के लिए फ़िरदौस-ए-जल्वा है
मैं ने हर बार तुझ से मिलते वक़्त
मिरी जब भी नज़र पड़ती है तुझ पर
शर्म दहशत झिझक परेशानी