पसीने से मिरे अब तो ये रुमाल
पास रह कर जुदाई की तुझ से
उस के और अपने दरमियान में अब
ये तेरे ख़त तिरी ख़ुशबू ये तेरे ख़्वाब-ओ-ख़याल
ये तो बढ़ती ही चली जाती है मीआद-ए-सितम
है मोहब्बत हयात की लज़्ज़त
जो रानाई निगाहों के लिए फ़िरदौस-ए-जल्वा है
चारा-गर भी जो यूँ गुज़र जाएँ
चाँद की पिघली हुई चाँदी में
शर्म दहशत झिझक परेशानी
मिरी जब भी नज़र पड़ती है तुझ पर
कौन सूद-ओ-ज़ियाँ की दुनिया में