ये तेरे ख़त तिरी ख़ुशबू ये तेरे ख़्वाब-ओ-ख़याल
पास रह कर जुदाई की तुझ से
क्या बताऊँ कि सह रहा हूँ मैं
चारा-गर भी जो यूँ गुज़र जाएँ
सर में तकमील का था इक सौदा
जो रानाई निगाहों के लिए फ़िरदौस-ए-जल्वा है
जो हक़ीक़त है उस हक़ीक़त से
है मोहब्बत हयात की लज़्ज़त
मैं ने हर बार तुझ से मिलते वक़्त
इश्क़ समझे थे जिस को वो शायद
साल-हा-साल और इक लम्हा
चाँद की पिघली हुई चाँदी में