हर तंज़ किया जाए हर इक तअना दिया जाए
ये तो बढ़ती ही चली जाती है मीआद-ए-सितम
जो रानाई निगाहों के लिए फ़िरदौस-ए-जल्वा है
शर्म दहशत झिझक परेशानी
इश्क़ समझे थे जिस को वो शायद
पास रह कर जुदाई की तुझ से
मिरी जब भी नज़र पड़ती है तुझ पर
उस के और अपने दरमियान में अब
चारा-गर भी जो यूँ गुज़र जाएँ
साल-हा-साल और इक लम्हा
मेरी अक़्ल-ओ-होश की सब हालतें
चाँद की पिघली हुई चाँदी में