शर्म दहशत झिझक परेशानी
उस के और अपने दरमियान में अब
चाँद की पिघली हुई चाँदी में
पास रह कर जुदाई की तुझ से
जो हक़ीक़त है उस हक़ीक़त से
है मोहब्बत हयात की लज़्ज़त
कौन सूद-ओ-ज़ियाँ की दुनिया में
इश्क़ समझे थे जिस को वो शायद
चारासाज़ों की चारा-साज़ी से
पसीने से मिरे अब तो ये रुमाल
सर में तकमील का था इक सौदा
मेरी अक़्ल-ओ-होश की सब हालतें