चारासाज़ों की चारा-साज़ी से
दर्द बदनाम तो नहीं होगा
हाँ दवा दो मगर ये बतला दो
मुझ को आराम तो नहीं होगा
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Gulzar
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Allama Iqbal
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(18249) Peoples Rate This
जो हक़ीक़त है उस हक़ीक़त से
थी जो वो इक तमसील-ए-माज़ी आख़िरी मंज़र उस का ये था
चारा-गर भी जो यूँ गुज़र जाएँ
चाँद की पिघली हुई चाँदी में
पसीने से मिरे अब तो ये रुमाल
वो कसी दिन न आ सके पर उसे
मैं ने हर बार तुझ से मिलते वक़्त
शर्म दहशत झिझक परेशानी
इश्क़ समझे थे जिस को वो शायद
ये तो बढ़ती ही चली जाती है मीआद-ए-सितम
है मोहब्बत हयात की लज़्ज़त