मेरी अक़्ल-ओ-होश की सब हालतें
तुम ने साँचे में जुनूँ के ढाल दीं
कर लिया था मैं ने अहद-ए-तर्क-ए-इश्क़
तुम ने फिर बाँहें गले में डाल दीं
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मिरी जब भी नज़र पड़ती है तुझ पर
ये तो बढ़ती ही चली जाती है मीआद-ए-सितम
साल-हा-साल और इक लम्हा
चारा-गर भी जो यूँ गुज़र जाएँ
शर्म दहशत झिझक परेशानी
मैं ने हर बार तुझ से मिलते वक़्त
कौन सूद-ओ-ज़ियाँ की दुनिया में
पसीने से मिरे अब तो ये रुमाल
इश्क़ समझे थे जिस को वो शायद
ये तेरे ख़त तिरी ख़ुशबू ये तेरे ख़्वाब-ओ-ख़याल
पास रह कर जुदाई की तुझ से
क्या बताऊँ कि सह रहा हूँ मैं