साल-हा-साल और इक लम्हा
कोई भी तो न इन में बल आया
ख़ुद ही इक दर पे मैं ने दस्तक दी
ख़ुद ही लड़का सा मैं निकल आया
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
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Jaun Eliya
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पसीने से मिरे अब तो ये रुमाल
हर तंज़ किया जाए हर इक तअना दिया जाए
ये तो बढ़ती ही चली जाती है मीआद-ए-सितम
मेरी अक़्ल-ओ-होश की सब हालतें
सर में तकमील का था इक सौदा
शर्म दहशत झिझक परेशानी
वो कसी दिन न आ सके पर उसे
चाँद की पिघली हुई चाँदी में
जो रानाई निगाहों के लिए फ़िरदौस-ए-जल्वा है
है मोहब्बत हयात की लज़्ज़त
मैं ने हर बार तुझ से मिलते वक़्त