उस के और अपने दरमियान में अब
क्या है बस रू-ब-रू का रिश्ता है
हाए वो रिश्ता-हा-ए-ख़ामोशी
अब फ़क़त गुफ़्तुगू का रिश्ता है
Gulzar
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(10150) Peoples Rate This
मिरी जब भी नज़र पड़ती है तुझ पर
थी जो वो इक तमसील-ए-माज़ी आख़िरी मंज़र उस का ये था
मेरी अक़्ल-ओ-होश की सब हालतें
मैं ने हर बार तुझ से मिलते वक़्त
वो कसी दिन न आ सके पर उसे
ये तेरे ख़त तिरी ख़ुशबू ये तेरे ख़्वाब-ओ-ख़याल
कौन सूद-ओ-ज़ियाँ की दुनिया में
चारासाज़ों की चारा-साज़ी से
पसीने से मिरे अब तो ये रुमाल
चारा-गर भी जो यूँ गुज़र जाएँ
क्या बताऊँ कि सह रहा हूँ मैं