वो किसी दिन न आ सके पर उसे
पास वादे को हो निभाने का
हो बसर इंतिज़ार में हर दिन
दूसरा दिन हो उस के आने का
Anwar Masood
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इश्क़ समझे थे जिस को वो शायद
उस के और अपने दरमियान में अब
है मोहब्बत हयात की लज़्ज़त
चाँद की पिघली हुई चाँदी में
ये तो बढ़ती ही चली जाती है मीआद-ए-सितम
चारा-गर भी जो यूँ गुज़र जाएँ
थी जो वो इक तमसील-ए-माज़ी आख़िरी मंज़र उस का ये था
चारासाज़ों की चारा-साज़ी से
पसीने से मिरे अब तो ये रुमाल
मेरी अक़्ल-ओ-होश की सब हालतें
मिरी जब भी नज़र पड़ती है तुझ पर
शर्म दहशत झिझक परेशानी